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आवारा बादल


पहला किस 

रवि के उत्साह का कोई ठिकाना नहीं था ।  गुड़ ना भी मिले मगर गुड़ मिलने की आस तो थी और यही आस उसके सपने रंगीन करने के लिए काफी थी । रवि की उम्मीदों को पंख लग गये । उसका नन्हा मगर तेज  दिमाग षडयंत्रों के कुचक्र बुनने में ही लगा रहा । वह मामाजी द्वारा बताया गया काम कर तो रहा था मगर एक निगाह रीना की हर गतिविधि पर भी रख रहा था । आखिर आज उसे रीना से वो मिलने वाला था जिसकी उम्मीद उसने की भी नहीं थी । हालात भी कितना कुछ दे जाते हैं ना, बिना कुछ मांगे ही । वह जब जब भी रीना को देखता तब तब रीना थोड़ी अपसेट सी लग रही थी । शायद उसकी डिमांड के कारण ऐसा हो ? अपसेट रहे तो रहे उसकी ब्लाग से , उसे तो अपने "ईनाम" से मतलब था । 

दोपहर को लंच के समय रीना ने उसे चुपके से एक कागज की पर्ची पकड़ाई और चलती बनी । रवि ने उस पर्ची को सबकी नजर बचाकर जेब में रख लिया और भोजन करता रहा । भोजन खत्म करके वह सीधा बाथरूम में गया और वहां जाकर उसने उस पर्ची को जेब से निकाला और पढने लगा । उस पर केवल इतना ही  लिखा हुया था ।
"शिव मंदिर 5 बजे" 
रवि को सूचना मिल गयी थी । वह समझ गया कि रीना इस बार घर पर नहीं मिलना चाहती है । घर पर मिलने में एक बार वह पकड़ी जा चुकी है इसलिए अब वह कोई रिस्क लेना नहीं चाहती होगी । 
वह बेसब्री से पांच बजे का इंतजार करने लगा । वह चार बजे ही अपने मिशन के लिए तैयार हो गया था । चार बजे के पश्चात उसे एक एक मिनट एक एक साल की तरह लग रहा था । वह मन ही मन सोच रहा था कि कब बजेंगे पांच ? बार बार उसकी निगाहें घड़ी पर जाती थी । मगर समय तो अपनी गति से चलता है । वह कोई रवि का गुलाम तो है नहीं जो उसके अनुसार चले । वक्त काटे कट नहीं रहा था रवि का । उसने सोचा कि क्यों नहीं शिव मंदिर ही चला जाये । तब तक मंदिर भी देख लेंगे और रीना की गतिविधियों पर निगाह भी रख लेंगे । 

वह शिव मंदिर पहुंच गया । गांव के बाहर बना था शिव मंदिर । बहुत मान्यता थी इस मंदिर की । गांव के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक । कहते हैं कि परमार शासकों ने सन 1000 ईस्वी के आसपास बनवाया था । यह मंदिर स्थापत्य कला का एक बेजोड़ नमूना था । मगर रख रखाव के अभाव में यह खंडहर में तब्दील हो गया था । रवि मंदिर की दीवारों पर बनी देवी देवताओं की मूर्तियों को देखने लगा । लोगों ने पत्थरों से उसकी मूर्तियां भग्न कर दी थीं । लोगों की बड़ी अजीब आदत है तोड़ने की । कुछ भी अच्छी हालत में रहना नहीं चाहिए । नकारात्मकता कूट कूट कर भरी है लोगों में । इतना प्राचीन मंदिर उसने पहली बार देखा था । वह मंदिर के  शिल्प के सौंदर्य में खो गया । उसे समय का भान ही नहीं रहा । 
"हैलो रवि" 
आवाज सुनकर रवि चौंका । पीछे मुड़कर देखा तो वहां पर रीना खड़ी थी । 
"हैलो रीना जी" । रवि रीना की ओर मुखातिब होते हुये बोला "आप कब आईं" ? 
"बस, अभी अभी । जब आपने देखा" । 
"ओह" । इतना ही कह पाया था वह । बाकी की बातें उसकी आंखें कह रही थी । 
"कितना प्यारा मंदिर है ये । है ना" ? 
रवि ने रीना की आंखों में देखकर कहा "हां बहुत प्यारा मंदिर है यह , पर आपसे ज्यादा खूबसूरत नहीं है" । 
उसकी बात पर रीना खिलखिलाकर हंस पड़ी । अपनी प्रशंसा सुनना सबको अच्छा लगता है ।  खुशी होठों में दबाते हुए वह बोली " क्या ऐसा नहीं लगता है कि तुम अपनी उम्र से ज्यादा मैच्योर हो ? तन बचपन का और मन जवानी का" । रीना के मुख पर एक अर्थपूर्ण मुस्कान तैर रही थी जिसे रवि भी समझ रहा था । 
"हमारा तो तन बदन मन सब कुछ जवान है । कहो तो प्रदर्शनी लगा दें" ? 
"हाय राम, कैसी बातें करते हो मंदिर में । शर्म नहीं आती है क्या" ? रीना की आंखें चौड़ी हो गई थीं । बड़ी मुश्किल से वह अपने होठों पर हाथ रखते हुए कह पाई थी । "मंदिर की दीवारों पर भी तो देखो कैसी कैसी मूर्तियां लगी हुईं हैं । जब मूर्तियां इस "काम" की क्रीड़ा की हालत में हो सकती हैं तो बाकी क्या रहा ? मैं तो केवल जवानी की बात कर रहा था और कह रहा था कि मेरा बदन भी जवानों जैसा ही है । देखना नहीं चाहो तो महसूस कर सकती हो" । वह कुटिल हंसी हंसते हुए बोला । 
"बड़े बेशर्म और बेहया हो । अपनी उम्र के लड़कों से बहुत आगे । लगता है जवानी ने आने में बहुत जल्दबाजी कर दी । खैर, हंसी मजाक बहुत हो गया अब काम की बातें कर लें । लाओ, अब मेरा दुपट्टा दे दो जल्दी से वरना कोई आ जायेगा" । रीना फुसफुसाकर बोली ।
"हमने कब मना किया है रीना जी ? हम तो उसे अपने साथ ही लेकर आये हैं आपको देने के लिए । मगर आप शायद कुछ भूल रही हैं " । रीना की गहरी आंखों में गहरे उतरते हुए रवि ने कहा था । 
"अब दे दीजिए ना । देखो मैं इस दुपट्टे के लिए यहां तक आ गयी हूँ । कितने कष्ट उठाये हैं मैंने इसके लिए, तुम क्या जानो" ? 
"तो थोड़ा और कष्ट उठाइये न । वो सामने एक कोटड़ी सी बनी हुई है , उसी में आ जाओ" । 
रीना ने प्रश्नवाचक निगाहों से रवि को देखा । रवि ने कहा "वहां कोई नहीं है । खाली है । मैंने चैक कर ली है । इसलिए वहां पर हम दोनों कुछ "लेन देन" करेंगे " । रवि ने अपना मंतव्य स्पष्ट करते हुए कहा । 
रीना अब कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी । उस रात की गलती का खामियाजा उठाने के लिए ही तो उसे यहां आना पड़ा था । इसलिए वह यह बाजी संभल कर खेल रही थी 
"सिर्फ एक किस , और कुछ नहीं" । रीना ने धीरे से कहा । 
"पर कल रात तो और भी बहुत कुछ हुआ था" 
"और कुछ नहीं हुआ था बस यही हुआ था । और दूसरी बात कि तुम अभी केवल "किस" के लायक हो । आगे के कामों के लिए अभी और बड़ा बनना पड़ेगा । समझे बच्चू । अब किस करना है तो कर लो वरना मैं जा रही हूँ" । रीना ने ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया । 
रवि को लगा कि अब डोर पूरी खींची जा चुकी है । अब और खींचने की गुंजाइश नहीं बची है । इसलिए बेहतर यही है कि जो भी मिल जाये उसे स्वीकार कर लिया जाये । ज्यादा के लालच में कहीं इससे भी हाथ धोना ना पड़ जाये" । वह चुपचाप कोटरी में चला गया और रीना भी उसके पीछे पीछे चली गई । 

रवि ने रीना को दोनों बांहों में थामा तो रीना कसमसा उठी । रवि के हाथ हटाते हुएबोली "मैंने कहा न, केवल 'किस' और कुछ नहीं" । 
"मैं भी तो वही कर रहा हूं । किस लेने के लिए बांहों में तो भरना पड़ेगा ना तुम्हें । अब तुम अपनी मरजी से आ जाओ या मैं जबरदस्ती करूं" ? 
रीना ने अबकी बार प्रतिवाद नहीं किया । रवि ने उसे आलिंगनबद्ध किया और एक लंबा किस लिया । पहला किस । जिंदगी भर याद रहता है यह किस । जैसे किसी ने अमृत पिला दिया हो । आदमी स्वर्ग की सैर पर चला जाता है इसमें । उसे ऐसा महसूस होता है कि वह आनंद के सागर में गोते लगा रहा है । उसे उस समय कुछ याद नहीं रहता है । किसी अनजाने लोक में विचरण करता है वह । इस आनंद लोक से बाहर आने को मन ही नहीं करता है उसका । रवि की बांहों का घेरा कसने लगा । 

इसी बीच रीना ने उसकी पैंट की जेब में हाथ डालकर दुपट्टा निकाल लिया और खुद को रवि की गिरफ्त से छुड़ाकर बाहर भाग आई । रवि इस अप्रत्याशित घटना से हतप्रभ रह गया । उसे यकीन नहीं हुआ कि रीना इतनी बड़ी कलाकार निकलेगी । मगर अब तो बाजी पलट चुकी थी । अब क्या हो सकता था ? अब तो अपनी मूर्खता पर केवल पश्चाताप ही किया जा सकता था । शिकार उसकी पहुंच से दूर जा चुका था । शिकारी के पास हाथ मलने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था । 

रवि हताश हो गया था । उसने बहुत से सपने सजाये थे मगर पूरे नहीं हो पाए । रीना जरूरत से ज्यादा तेज निकली । पर कोई बात नहीं । आज इतना मिला है कल और भी मिल सकता है । यह सोचकर वह घर पर वापस आ गया । उसकी तृप्ति नहीं हुई थी । आग जो सुलगी थी वह अब और भड़क उठी थी । लेकिन कुछ हो नहीं सकता था । रीना ने ठेंगा दिखा दिया था । इस कुंठा में उसका मन शादी में भी नहीं लगा । 

शादी होने के बाद वह अपने गांव चला आया । 

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1 Comments

Chetna swrnkar

30-Jul-2022 10:49 PM

Nice

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